शनिवार, 25 दिसंबर 2010

डायबिटीज या मधुमेह क्या है ?

डायबिटीज या मधुमेह क्या है ?
डायबिटीज या मधुमेह चयापचय समन्धी विकृति या रोग है जिसमें रक्त में शर्करा की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, क्योंकि या तो शरीर में रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने वाले इंसुलिन नामक हार्मोन का निर्माण बंद हो जाता है या इंसुलिन हार्मोन अपने कार्य को ठीक से नहीं कर पाता है।


ग्लूकोज का सूत्र C6H12O6 है। इसमें 6 कार्बन के परमाणुओं का एक षटकोणीय छल्ला होता है जिनसे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के परमाणु जुड़े रहते हैं। इसमें सूर्य की असीम ऊर्जा संरक्षित रहती है। यह हमारे शरीर का ईंधन है जो शरीर की हर कोशिका तक पहुँचता है। और कोशिका में ऑक्सीजन से क्रिया कर कार्बन-डाई-ऑक्साइड, पानी तथा ऊर्जा का निर्माण करता है। ग्लूकोज मृदुभाषी, षठ-बंध उदरधारी, बलवान, अहंकारी, कपटी, कामचोर, विश्वासघाती, आवारा और शरारती प्रवृत्ति का तत्व है इसीलिये इन्सुलिन नामक हार्मोन एक कठोर प्रोफेसर की भाँति इसको कड़े अनुशासन में रखता है और इसकी सारी गतिविधियों पर पूरा नियंत्रण रखता है। हर कोशिकाओं की भित्तियों या झिल्लियों में शर्करा के प्रवेश हेतु मधु-द्वार (Glucose Transporter-4) होते हैं। इन मधु-द्वारों के तालों की कुंजियां इन्सुलिन के पास ही रहती है। आवश्यकता होने पर इन्सुलिन मधु-द्वार खोल देता है और ग्लूकोज को कोशिकाओं में अपने कार्य करने और प्रवेश की अनुमति दे देता है। यदि पर्याप्त इंसुलिन उपलब्ध न हो या इंसुलिन अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाये, जैसा कि डॉयबिटीज में होता है, तो ग्लूकोज नामक ईंधन कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर पाता है और खून में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है। कोशिकाएं ऊर्जाहीन तथा कमजोर पड़ने लगती हैं और वसा के उपापचय से ऊर्जा ग्रहण करती हैं। खून में बढ़े हुए ये स्वछन्द, कामचोर, और घमंडी ग्लूकोज के अणु बेपरवाह होकर शरीर में दहशतगर्दी करने निकल पड़ते हैं और शरीर में उत्पात मचाते रहते हैं। इनकी शरारतों से शरीर के कोमल अंगों को धीरे-धीरे नुकसान पहुँचने लगता है, इसलिये वे ग्लूकोज की शिकायत गुर्दों को भेजते हैं। गुर्दे स्थिति का अवलोकन करते हैं और ग्लूकोज को दण्ड देने के बारे में विचार करते हैं। उधर रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ती जाती है और एक स्थिति ऐसी आती है जब रक्त में ग्लूकोज की मात्रा एक निश्चित सीमा को छू लेती है, तब गुर्दों के सब्र का बांध टूट जाता है और वे ग्लूकोज को दंड के रूप में मूत्र के साथ शरीर से विसर्जन करना शुरू कर देते हैं। इन्हीं कारणों से चिकित्सा-शास्त्री डायबिटीज के रोगी को आहार प्रबंधन, औषधियों और इन्सुलिन की मदद से रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को सामान्य रखने की सलाह देते हैं।
ग्लूकोज के अणु हमारे दुश्मनों जैसे जीवाणु, विषाणु, परजीवियों, मुक्त-कणों, कैंसर आदि से जल्दी धुल मिल जाते हैं, मित्रता कर लेते हैं, उनको पोषण और ऊर्जा देते हैं। ऐसा विश्वासघाती और कपटी है ये ग्लूकोज।
डायबिटीज के प्रकार
डायबिटीज कई प्रकार की होती है-
टाइप-1 डायबिटीज
टाइप-1 डायबिटीज, जिससे पहले जुविनाइल डायबिटीज भी कहा जाता था, में शरीर का स्व-प्रतिरक्षित तंत्र (ऑटो-इम्यून सिस्टम) अग्न्याशय की बीटा कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। जिसके फलस्वरूप शरीर में इन्सुलिन बनना लगभग बन्द हो जाता है। अतः इसके उपचार के लिए भी इन्सुलिन ही देना पड़ता है। टाइप-1 डायबिटीज आम तौर पर बच्चों और किशोरों में होती है।
टाइप-2 डायबिटीज
टाइप-2 डायबिटीज बहुत ही सामान्य हो गयी है। यह अधिकतर 40 वर्ष की उम्र के बाद होती है, लेकिन भारतीयों में यह बीमारी कम उम्र में भी होने लगी है। टाइप-2 डायबिटीज में या तो पेनक्रियाज इन्सुलिन पर्याप्त मात्रा में स्त्रावित नहीं करता है या शरीर में इन्सुलिन ठीक प्रकार कार्य नहीं कर पाता है। जिसके फलस्वरूप ग्लूकोज कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर पाता है और रक्त में इसकी मात्रा बढ़ने लगती है। इसे इन्सुलिन प्रतिरोध (Resistance) भी कहते हैं।
जेस्टेशनल डायबिटीज
प्री-डायबिटीज
कुछ स्त्रियों की गर्भावस्था में रक्त शर्करा बढ़ जाती है, जिसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं। यह केवल गर्भावस्था में ही होती है और शिशु के जन्म के पश्चात प्रसूता की रक्त शर्करा सामान्य हो जाती है। लेकिन इन्हें बाद में टाइप-2 डायबिटीज होने की संभावना रहती है।
कुछ लोगों की रक्त शर्करा सामान्य से ज्यादा रहती है लेकिन इतनी भी नहीं कि इसे डायबिटीज परिभाषित किया जाये। इसे प्री-डायबिटीज या इम्पेयर्ड ग्लूकोज टॉलरैंस कहते हैं। प्री-डायबिटीज से पिड़ित लोगों के लिए आवश्यक है कि वे अपनी जीवन शैली को सुधारे, नियमित व्यायाम करें और वजन घटायें ताकि डायबिटीज के विकराल स्वरूप से बच सके। इस अवस्था में डायबिटीज को रोका जा सकता है और प्री-डायबिटीज से सामान्य अवस्था में लोटा जा सकता है। प्री-डायबिटीज के रोगी को नियमित रक्त शर्करा की जांच करवाते रहना चाहिये। यदि रोगी अपनी जीवन शैली में बदलाव नहीं लाता है तो आगे चलकर उसे टाइप-2 डायबिटीज हो सकती है।
मधुमेह के लक्षण


अग्न्याशय और इंसुलिन (रासायनिक सूत्र: C45H69O14N11S.3H2O)



हमारे उदर में पेनक्रियाज या अग्न्याशय एक ग्रन्थि होती है जो आमाशय के नीचे और पीछे की ओर स्थित होती है। अग्न्याशय में कुछ विशेष तरह की बीटा कोशिकाओं का समूह होता है जिसेआइलेट्स ऑफ लैंगरहैन्सकहते हैं। ये बीटा कोशिकाऐं ही इंसुलिन नामक हार्मोन का निर्माण करती है। रासायनिक संरचना की दृष्टि से यह एक पेप्टाइड हार्मोन है जिसकी रचना ५१ अमीनो अम्ल से होती है। भोजन के कार्बोहइड्रेट अंश के पाचन के पश्चात ग्लूकोज का निर्माण होता हैं। आंतो से अवशोषित होकर यह ग्लूकोज रक्त के माध्यम से शरीर के सभी भागों में पहुंचता है। शरीर की सभी सजीव कोशिकाओं में कोशिकीय श्वसन की क्रिया होती है जिसमें ग्लूकोज के विघटन से ऊर्जा उत्पन्न होती है जिसका जीवधारी विभिन्न कार्यों में प्रयोग करते हैं। ग्लूकोज के विघटन से शरीर को कार्य करने, सोचने एवं अन्य कार्यों के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है। पूरे अग्न्याशय में एक लाख से ज्यादाआइलेट्स ऑफ लैंगरहैन्सहोते हैं और हर समुह में 80-100 बीटा कोशिकाऐं होती है। ये कोशिकाएं प्रति 10 सैकेंड में 2 मिलीग्राम प्रतिशत की दर से ब्लड ग्लूकोज को नापती रहती हैं। एक या डेढ मिनट में बीटा कोशिकाएं रक्त शर्करा स्तर को सामान्य बनाए रखने के लिए आवश्यक इंसुलिन की मात्रा उपलब्ध करा देती हैं। जब मधुमेह नहीं होती है तो रक्त-शर्करा के स्तर को अत्यधिक ऊपर उठाना लगभग असंभव रहता है। अतएव इंसुलिन की आपूर्ति लगभग कभी खत्म ही नहीं होती।


अग्न्याशय में कुछ अल्फा कोशिकाऐं भी होती है जो ग्लूकागोन नामक हार्मोन बनाती है। ग्लूकागोन इंसुलिन की मात्रा को संतुलित रखते हुए रक्त में शर्करा को सामान्य रखने में मदद करता है। अग्न्याशय भोजन को पचाने हेतु एन्जाइम्स भी बनाता है। जो आवश्यकतानुसार पेनक्रियेटिक रस के रूप में पेनक्रियेटिक डक्ट द्वारा आंत में प्रवेश करता है।

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

आँखों पर डायबिटीज की कुदृष्टि

आँखों पर डायबिटीज की कुदृष्टि

आँखें हमारे शरीर का सबसे आवश्यक अंग है। आँखें नहीं तो जीवन में  कुछ भी नहीं  है। आँखें नहीं तो जिंदगी व्यर्थ हो जाती है, फ्यूज हो जाती है। आँखों पर हमारे कवियों, शायरों और साहित्यकारों ने आँखो के बारे बहुत कुछ लिखा है, जैसे ये गीत

  

         



इसलिए डायबिटीज के रोगियों को अपनी आँखों की देखभाल में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिये क्योंकि  मधुमेह के अन्धेपन या दृष्टि-दोष का मुख्य कारण है, आँखों पर मधुमेह का दुष्प्रभाव जिसे डायबिटिक रेटीनोपैथी कहते है। टाइप-2 डायबिटीज के रोगियों में करीब 60 प्रतिशत से ज्यादा लोगों में रेटीनोपैथी पाई जाती है।


इसे जानना अति आवश्यक इसलिए है कि मधुमेह के कड़े नियंत्रण द्वारा रेटीनोपैथी को रोका जा सकता है और यदि सही समय पर जाँच करके रेटीनोपैथी का निदान हो जाये तो इसका इलाज संभव है यानी अन्धेपन को रोका जा सकता है। 

 मधुमेह के रोगी को लम्बी अवधी तक रक्त शर्करा ज्यादा रहे और उपचार भी लिया जाये तो दृष्टिपटल दोष या रेटीनोपैथी नामक रोग हो जाता है जो आगे चलकर रोगी में अन्धापन लाता है। रक्त में ग्लूकोज ज्यादा होने से दृष्टिपटल या रेटीना की रक्त वाहिकाएँ केशिकाऐं क्षतिग्रस्त हो जाती है और जिससे रेटीना को आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति प्रभावित हो जाती है।

रेटीना आँख के पिछले हिस्से में प्रकाश के प्रति संवेदनशील एक पर्दा होता है। जो दृष्य हम देख रहे हैं, उसका प्रतिबिम्ब आँखों के रेटीना पर बनता है। रेटीना इस प्रतिबिम्ब को विद्युत संकेतों में परिवर्तित कर ओप्टिक नर्व द्वारा मस्तिष्क के विजुवल कोर्टेक्स को भेजती है। मस्तिष्क दोनों आँखों से प्राप्त हुए संकेतों को मिलाकर एक त्रि-आयामी प्रतिबिम्ब तैयार करती है। यह त्रि-आयामी प्रतिबिम्ब ही हमें किसी भी वस्तु की दूरी या गहराई का अनुभव करवाता है। बिना रेटीना के हमारी ऑखे मस्तिष्क से सम्पर्क और समन्वय नहीं कर सकती यानी रेटीना के बिना किसी भी चीज को देखना असंभव है।

डायबिटिक रेटीनोपैथी भी आरंभिक अवस्था जिसे पृष्ठभूमि रेटीनोपैथी कहते है, में रेटीना की रक्त वाहिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती है। जिसके कारण वाहिकाओं से तरल दृव्य का रिसाव होने लगता है। जिससे दृष्टि में धुंधलापन जाता है। आगे चलकर प्रोलिफरेटिव रेटीनोपैथी हो जाती है  जिसमें रेटीना और कभी-कभी आँख के अन्य हिस्सों में नई असामान्य   रक्त वाहिकाऐं बन जाती है। यदि ये वाहिकाऐं आँख के केन्द्र में  मौजूद स्पष्ट दृव्य (Vitreous Humor) में खून स्रावित करने लगती है तो प्रकाश रेटीना तक नहीं पहुँच पाता है और देखने वाले को कभी-कभी धुंधला नजर आता है। यदि खून धीरे-धीरे अवशोषित हो जाए तो नजर फिर से सामान्य हो सकती है। लेकिन यदि खून का बहना जारी रहता है तो नजर तब तक धुंधली बनी रहती है जब तक कि समस्या का इलाज हो जाए। रेटीनोपैथी के बढ़ने में उच्च रक्तचाप एवं मूत्र में अल्ब्यूमिन विसर्जित होने का भी बड़ा हाथ होता है।

यदि उपचार किया जाये तो रेटीना के पीछे बनी नई रक्त वाहिकाओं के सिकुड़ने और नये ऊत्तक बनने के फलस्वरुप रेटीना आँख  के पिछले सिरे अलग हो जाती है, इसे रेटीनल डिटेचमेंट कहते हैं। यदि रेटीनल डिटेचमेंट का समय पर उपचार किया जाये तो रोगी हमेशा के लिए अंधा हो जाता है।

रेटीनोपैथी के कारण मेक्यूला, जो रेटीना का वो मध्य भाग है जो हमारे पढ़ने की दृष्टि को नियंत्रित करता है, में तरल दृव्य के रिसाव के कारण सूजन जाती है जिससे दृष्टि धुंधली हो जाती है।

डायबिटीक रेटीनोपैथी के लक्षण
·        आरम्भिक अवस्था में सामान्यतः कोई लक्षण नहीं होते।
·        कभी-कभी पढ़ते या कार चलाते समय केन्दि्रय दृष्टि का ह्रास होता है, रंग पहचानने में परेशानी होती है और नजर में धुंधलापन जाता है। रक्त वाहिकाओं से रक्त स्त्राव होने के कारण कभी-कभी दृष्टि में छोटे धब्बे या तैरते हुए कण दिखाई देते है जो कुछ हफ्तों या महीनों में ठीक भी हो जाते है। संपूर्ण अन्धापन। 

रेटीनोपैथी का निदान  

जब आप अपनी आँखों की जाँच के लिए नैत्र चिकित्सक के पास जायेंगे तो वह अनेक विधियों में से किसी एक के माध्यम से आपके रेटीना की जाँच करेगा। वह आपकी आँखों में दवा डालकर आँखों की पुतली का विस्तारण करेगा और ऑफ्थेल्मोस्कोप से आपके रेटीना की जाँच करेगा।  इसमें से प्रकाश की एक किरण आपकी आँख में डाली जाती है ताकि आँख के पीछे मौजूद रेटीना को अच्छी तरह देखा जा सके। नैत्र चिकित्सक एक स्लिट लैम्प माइक्रोस्कोप नामक उपकरण द्वारा भी आँख के अन्दरूनी हिस्से को बड़ा करके देख सकता है।

अगर रेटिना में कोई गड़बड़ लगती है तो डाक्टर आपकी आंख का लोरिसिन एंजियोग्राम करना चाहेंगे। लोरिसिन नामक एक डाई को आपकी बाजू में इंजैक्ट कर दिया जाता है जिसे आपके आंखों तक पहुंचने में कुछ ही सैकेंड लगते हैं। तकनीशियन आपके रेटिना की कई तस्वीरें लेते हैं। इन तस्वीरों से पता चलता है कि आपकी आंखों में कोई लीकेज या असामान्य रक्त वाहिकाएं मौजूद तो नही है। आपके डाक्टर को ये सही-सही मालूम होगा कि रेटिना के किन हिस्सों का इलाज किए जाने की जरूरत है। जब एक बार रिसाव वाली इन जगहों या नई रक्त वाहिकाओं का सही-सही पता चल जाता है तो इन्हें लेजर के इस्तेमाल से ठीक किया जा सकता है। इससे नजर जाने का खतरा नहीं रहता।

उपचार

रेटीनोपैथी का उपचार लेजर फोटो को-एगूलेशन द्वारा किया जाता है। याद रखें समय पर किया गया उपचार आपको अन्धेपन से बचा सकता है। लेजर उपचार से 90 प्रतिशत लोगों को अभूतपुर्व फायदा होता है। इसलिए समय-समय पर आँखों की जाँच करवाते रहें।

आजकल ग्रीन लेजर का प्रयोग ज्यादा हो रहा है, यह अत्याधुनिक एवं दर्द रहित उपचार है, लेकिन यदि रोगी को मोतियाबिन्द हो तो ग्रीन लेजर द्वारा उपचार संभव नहीं है।

रेड लेजर द्वारा उपचार मोतियाबिन्द के रोगियों में भी किया जा सकता है। इसमें रोगी को बेहोश किया जाता है।
मधुमेह के का लेंस मरीजों में ब्लड शुगर के घटते-बढ़ते रहने के कारण आँख कभी फूल जाता है और कभी सिकुड़ जाता है और आँखों के सामने धुँधलापन छा जाता है। कभी-कभी इन्सुलिन चिकित्सा शुरू करने पर भी ऐसा होता है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है अतः डरने की जरूरत नहीं है। यह एक क्षणिक बात है और इससे ऑखो को कोई नुकसान नहीं पहुँचता।

बचाव के मुख्य उपाय
·        मधुमेह के रोगी को हर 6 महिने में नैत्र विशेषज्ञ से आँखों की जाँच करवानी चाहिए।
·        मधुमेह का कठोर नियंत्रण।
·        रक्त चाप का नियंत्रण।
·        मूत्र में एलब्यूमिन की जाँच।
·        लिपिड प्रोफाइल कराकर उपयुक्त दवा लें।
·        ओमेगा-3 फैट युक्त भोजन खांये जैसे अलसी या मछली।
·        एन्टीऑक्सीडेन्टस का उपयोग करें।
·        उचित व्यायाम करें।
·        खूब सब्जियां, ताजे फल और अंकुरित अन्नों का सेवन करें।