शनिवार, 2 जुलाई 2011

GOLDEN DIABETIC SAYING

            मधुमेही मुहावरे

KEEP FEET LIKE FACE      -   चेहरे से ज्यादा पैरो पर ध्यान दो

 
NO FEAST NO FAST       -  मधुमेह मे न दावत ले न उपवास करे

OBESITY IS MUSEUM OF DISEASE - मोटापा रोगो का संग्रहालय है

                    DIABETES IS DISEASE OF 3-P                    
                       
 P-POLYPHAGIA -बार बार भूख लगना      

P-POLYURIA   -  बार बार लघु शंका
 P-POLYDYPSIA -  बार बार प्यास लगना

पुरूषों के लिए 70 किलो, महिलाओं के लिए60किलो लक्ष्मण रेखा है

पुरूषो के लिए कमर का धेरा 90सेमीऔर महिलाओं के लिए 80सेमी लक्ष्मण रेखा है

* AS YOUR DIET, SO IS YOUR DIABETES.

* DIET IS YOUR DESTINY.



* DELAY IN DIAGNOSIS OF DIABETES IS DANGEROUS.


* FITNESS & FATNESS NEVER CLOSE COMPANION.

* FOOD IS OUR FATE FUTURE AND FORTUNE.

* BODY SHOULD LUMINOUS NOT VOLUMINOUS.

* DIABETES IS LAWFUL WIFE OF OBESITY




बुधवार, 22 जून 2011

DIABETES + OBESITY = DIABESITY


   डायबेसिटी यानि मोटापे का मधुमेह

                                       डॉ. आर. के. मालोत

 

                                                                                              




आज के आधुनिक समय में मोटापा महामारी की तरह फेलता जा रहा है विशेष कर शहरी क्षैत्रांे की  महिलाऐं और वयस्को में मोटापा ज्यादा देखा गया हैं। आजकल स्कूली बच्चों में भी मोटापा रोग  बन गया हैं। अधिकांश शहरी क्षैत्रों के स्कूली बच्चे फास्ट फुड़ और शितल पेय लेने के शोकिन हो गये है जिसके फलस्वरूप अनावश्यक कैलोरी चर्बी की तह के रूप में शरीर का आवरण बनती जाती हैं। मौटापा अब विश्व व्यापी समस्या बन चुका हैं। मौटापे में अनावश्यक चर्बी जमा रहने से मधुमेह की सम्भावना कई गुना बड़ जाती हैं। कई चिकित्सक मोटापे और मधुमेह को दो सगी बहनो की संज्ञा देते हैं। आजकल मेटाबोलिक रोग विशेषज्ञ मधुमेह यानि डायबिटिज और मोटापा यानि ओबेसिटी दोनों को एक साथ एक रोग के रूप में निरूपित करते है जिसे वे डायबेसिटी कहते हैं।

        


                  डायबिटिज    ओबेसिटी    डायबेसिटी

                                  (DIABETES + OBESITY = DIABESITY)

डायबेसिटी इस शताब्दि का एक नया रोग के रूप में उभर आया है, जो मानव द्वारा ही आमन्त्रित किया गया हैं। यह बड़ी विडम्बना की बात है जिस देश में करोड़ो लोगों को दो जून रोटी नही मिल पाती है, कई लोग भूखे पेट ही मजबूरन सो जाते हैं। वहाँ खान-पान का रोग बड़ी संख्या में होना एक दुखद आश्चर्य हैं। भारत में 3-4 करोड़ लोग डायबिटीज से ग्रसित है जो विश्व के अन्य देशों की संख्या में काफी अधिक हैं। अब भारत को मधुमेह की विश्व राजधानी कहा जाने लगा हैं, कहा जाता है कि सन् 2020 तक मधुमेही रोगी की संख्या भारत में 7-8 करोड़ हो जायेगी।
           
मोटापे की वजह से एक रोग समूह उत्पन्न हो जाता है जिसे मेटाबोलिक रोग कहते हैं जिससें शरीर में केन्द्रिय मोटापा, उच्च रक्त चाप, शरीर में कालेस्ट्रेरोल और ट्रायग्लिसराइड की अधिकता, इन्सुलिन के प्रति शरीर में प्रतिरोधकता बन जाती हैं। इन सब के सम्मिलित रूप के कारण डायबेसिटी की सम्भावना प्रबल हो जाती हैं।                               
हमारे उदर के चारो ओर का घेरा जितना ज्यादा होगा उतना ही हदय और मधुमेह रोग जल्दी आ धमकते हैं। हमारे शरीर में जरूरत से ज्यादा चर्बी जमा रहने से शरीर में ग्लुकोस की मात्रा बढ़ती जाती हैं जिसे उपयोग लाने हेतु अग्नाशय से इन्सुलिन हारमोन नियमित अधिक मात्रा में स्त्रावित होता रहता हैं। लम्बे समय तक इन्सुलिन का अधिक और जरूरत से ज्यादा स्त्रवण से इन्सुलिन उत्पादन की बीटा कोशिकाए खाली हो जाती हैं और इन्सुलिन की लगातार कमी होती जाती हैं तथा कालान्तर में मोटे लोगो में डायबिटीस हो जाता है, जिसे हम डायबेसिटी कहते हैं।
कई महिलाओं में मोटापे की वजह से विवाह उपरान्त गर्भवती नही हो पाती है, उन महिलाओं के अण्डाशय से अण्ड आरोहण नही हो पाता हैं। मोटी महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान गेस्टेशनल डायबिटीज हो जाती है जिसका उपचार मात्र इन्सुलिन इन्जैक्शन ही हैं, ऐसी दुर्गम स्थिति में शिशु पर खराब प्रभाव पड़ता हैं। बच्चा प्रसव में दौरान मोटा पैदा होता हैं साथ ही लम्बे समय पर जल्दी ही मोटापे जन्य मधुमेह से ग्रसित हो सकता हैं।

                

                                    







मोटापा और मधुमेह एक खतरनाक जुगल बन्दी है, इसके बचाव हेतु मोटापा न हो इस हेतु प्रयासरत होना आवश्यक हैं। शरीर पर जमा अनावश्यक चर्बी के आवरण को हटाना होगा, इस हेतु जीवन पद्धती में एक अनुशासनात्मक परिवर्तन लाना होगा, जिसमें व्यायाम, योग, भ्रमण, श्रमयुक्त कार्य, भोजन मंे कमी, खाने में कैलोरी नियन्त्रण से शरीर एकदम छर छरा और स्वस्थ्य हो सकता है तथा मोटापा समाप्त होने पर डायबेसिटी नामक रोग कभी भी पास फटक नही सकता हैं।


शनिवार, 25 दिसंबर 2010

डायबिटीज या मधुमेह क्या है ?

डायबिटीज या मधुमेह क्या है ?
डायबिटीज या मधुमेह चयापचय समन्धी विकृति या रोग है जिसमें रक्त में शर्करा की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, क्योंकि या तो शरीर में रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने वाले इंसुलिन नामक हार्मोन का निर्माण बंद हो जाता है या इंसुलिन हार्मोन अपने कार्य को ठीक से नहीं कर पाता है।


ग्लूकोज का सूत्र C6H12O6 है। इसमें 6 कार्बन के परमाणुओं का एक षटकोणीय छल्ला होता है जिनसे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के परमाणु जुड़े रहते हैं। इसमें सूर्य की असीम ऊर्जा संरक्षित रहती है। यह हमारे शरीर का ईंधन है जो शरीर की हर कोशिका तक पहुँचता है। और कोशिका में ऑक्सीजन से क्रिया कर कार्बन-डाई-ऑक्साइड, पानी तथा ऊर्जा का निर्माण करता है। ग्लूकोज मृदुभाषी, षठ-बंध उदरधारी, बलवान, अहंकारी, कपटी, कामचोर, विश्वासघाती, आवारा और शरारती प्रवृत्ति का तत्व है इसीलिये इन्सुलिन नामक हार्मोन एक कठोर प्रोफेसर की भाँति इसको कड़े अनुशासन में रखता है और इसकी सारी गतिविधियों पर पूरा नियंत्रण रखता है। हर कोशिकाओं की भित्तियों या झिल्लियों में शर्करा के प्रवेश हेतु मधु-द्वार (Glucose Transporter-4) होते हैं। इन मधु-द्वारों के तालों की कुंजियां इन्सुलिन के पास ही रहती है। आवश्यकता होने पर इन्सुलिन मधु-द्वार खोल देता है और ग्लूकोज को कोशिकाओं में अपने कार्य करने और प्रवेश की अनुमति दे देता है। यदि पर्याप्त इंसुलिन उपलब्ध न हो या इंसुलिन अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाये, जैसा कि डॉयबिटीज में होता है, तो ग्लूकोज नामक ईंधन कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर पाता है और खून में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है। कोशिकाएं ऊर्जाहीन तथा कमजोर पड़ने लगती हैं और वसा के उपापचय से ऊर्जा ग्रहण करती हैं। खून में बढ़े हुए ये स्वछन्द, कामचोर, और घमंडी ग्लूकोज के अणु बेपरवाह होकर शरीर में दहशतगर्दी करने निकल पड़ते हैं और शरीर में उत्पात मचाते रहते हैं। इनकी शरारतों से शरीर के कोमल अंगों को धीरे-धीरे नुकसान पहुँचने लगता है, इसलिये वे ग्लूकोज की शिकायत गुर्दों को भेजते हैं। गुर्दे स्थिति का अवलोकन करते हैं और ग्लूकोज को दण्ड देने के बारे में विचार करते हैं। उधर रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ती जाती है और एक स्थिति ऐसी आती है जब रक्त में ग्लूकोज की मात्रा एक निश्चित सीमा को छू लेती है, तब गुर्दों के सब्र का बांध टूट जाता है और वे ग्लूकोज को दंड के रूप में मूत्र के साथ शरीर से विसर्जन करना शुरू कर देते हैं। इन्हीं कारणों से चिकित्सा-शास्त्री डायबिटीज के रोगी को आहार प्रबंधन, औषधियों और इन्सुलिन की मदद से रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को सामान्य रखने की सलाह देते हैं।
ग्लूकोज के अणु हमारे दुश्मनों जैसे जीवाणु, विषाणु, परजीवियों, मुक्त-कणों, कैंसर आदि से जल्दी धुल मिल जाते हैं, मित्रता कर लेते हैं, उनको पोषण और ऊर्जा देते हैं। ऐसा विश्वासघाती और कपटी है ये ग्लूकोज।
डायबिटीज के प्रकार
डायबिटीज कई प्रकार की होती है-
टाइप-1 डायबिटीज
टाइप-1 डायबिटीज, जिससे पहले जुविनाइल डायबिटीज भी कहा जाता था, में शरीर का स्व-प्रतिरक्षित तंत्र (ऑटो-इम्यून सिस्टम) अग्न्याशय की बीटा कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। जिसके फलस्वरूप शरीर में इन्सुलिन बनना लगभग बन्द हो जाता है। अतः इसके उपचार के लिए भी इन्सुलिन ही देना पड़ता है। टाइप-1 डायबिटीज आम तौर पर बच्चों और किशोरों में होती है।
टाइप-2 डायबिटीज
टाइप-2 डायबिटीज बहुत ही सामान्य हो गयी है। यह अधिकतर 40 वर्ष की उम्र के बाद होती है, लेकिन भारतीयों में यह बीमारी कम उम्र में भी होने लगी है। टाइप-2 डायबिटीज में या तो पेनक्रियाज इन्सुलिन पर्याप्त मात्रा में स्त्रावित नहीं करता है या शरीर में इन्सुलिन ठीक प्रकार कार्य नहीं कर पाता है। जिसके फलस्वरूप ग्लूकोज कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर पाता है और रक्त में इसकी मात्रा बढ़ने लगती है। इसे इन्सुलिन प्रतिरोध (Resistance) भी कहते हैं।
जेस्टेशनल डायबिटीज
प्री-डायबिटीज
कुछ स्त्रियों की गर्भावस्था में रक्त शर्करा बढ़ जाती है, जिसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं। यह केवल गर्भावस्था में ही होती है और शिशु के जन्म के पश्चात प्रसूता की रक्त शर्करा सामान्य हो जाती है। लेकिन इन्हें बाद में टाइप-2 डायबिटीज होने की संभावना रहती है।
कुछ लोगों की रक्त शर्करा सामान्य से ज्यादा रहती है लेकिन इतनी भी नहीं कि इसे डायबिटीज परिभाषित किया जाये। इसे प्री-डायबिटीज या इम्पेयर्ड ग्लूकोज टॉलरैंस कहते हैं। प्री-डायबिटीज से पिड़ित लोगों के लिए आवश्यक है कि वे अपनी जीवन शैली को सुधारे, नियमित व्यायाम करें और वजन घटायें ताकि डायबिटीज के विकराल स्वरूप से बच सके। इस अवस्था में डायबिटीज को रोका जा सकता है और प्री-डायबिटीज से सामान्य अवस्था में लोटा जा सकता है। प्री-डायबिटीज के रोगी को नियमित रक्त शर्करा की जांच करवाते रहना चाहिये। यदि रोगी अपनी जीवन शैली में बदलाव नहीं लाता है तो आगे चलकर उसे टाइप-2 डायबिटीज हो सकती है।
मधुमेह के लक्षण


अग्न्याशय और इंसुलिन (रासायनिक सूत्र: C45H69O14N11S.3H2O)



हमारे उदर में पेनक्रियाज या अग्न्याशय एक ग्रन्थि होती है जो आमाशय के नीचे और पीछे की ओर स्थित होती है। अग्न्याशय में कुछ विशेष तरह की बीटा कोशिकाओं का समूह होता है जिसेआइलेट्स ऑफ लैंगरहैन्सकहते हैं। ये बीटा कोशिकाऐं ही इंसुलिन नामक हार्मोन का निर्माण करती है। रासायनिक संरचना की दृष्टि से यह एक पेप्टाइड हार्मोन है जिसकी रचना ५१ अमीनो अम्ल से होती है। भोजन के कार्बोहइड्रेट अंश के पाचन के पश्चात ग्लूकोज का निर्माण होता हैं। आंतो से अवशोषित होकर यह ग्लूकोज रक्त के माध्यम से शरीर के सभी भागों में पहुंचता है। शरीर की सभी सजीव कोशिकाओं में कोशिकीय श्वसन की क्रिया होती है जिसमें ग्लूकोज के विघटन से ऊर्जा उत्पन्न होती है जिसका जीवधारी विभिन्न कार्यों में प्रयोग करते हैं। ग्लूकोज के विघटन से शरीर को कार्य करने, सोचने एवं अन्य कार्यों के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है। पूरे अग्न्याशय में एक लाख से ज्यादाआइलेट्स ऑफ लैंगरहैन्सहोते हैं और हर समुह में 80-100 बीटा कोशिकाऐं होती है। ये कोशिकाएं प्रति 10 सैकेंड में 2 मिलीग्राम प्रतिशत की दर से ब्लड ग्लूकोज को नापती रहती हैं। एक या डेढ मिनट में बीटा कोशिकाएं रक्त शर्करा स्तर को सामान्य बनाए रखने के लिए आवश्यक इंसुलिन की मात्रा उपलब्ध करा देती हैं। जब मधुमेह नहीं होती है तो रक्त-शर्करा के स्तर को अत्यधिक ऊपर उठाना लगभग असंभव रहता है। अतएव इंसुलिन की आपूर्ति लगभग कभी खत्म ही नहीं होती।


अग्न्याशय में कुछ अल्फा कोशिकाऐं भी होती है जो ग्लूकागोन नामक हार्मोन बनाती है। ग्लूकागोन इंसुलिन की मात्रा को संतुलित रखते हुए रक्त में शर्करा को सामान्य रखने में मदद करता है। अग्न्याशय भोजन को पचाने हेतु एन्जाइम्स भी बनाता है। जो आवश्यकतानुसार पेनक्रियेटिक रस के रूप में पेनक्रियेटिक डक्ट द्वारा आंत में प्रवेश करता है।